03 January 2014

अनोखी दुनिया

अनोखी दुनिया


बडी खामोशी के साथ इतनी देर से बैठे मन में उमड़ रहा था बस ये कि खामोशिया रिश्तों में दूरिया बना देती हैं, लेकिन तुमने दूर होकर खामोशिया बना ली. अब सभी कहते हैं खुश हो तुम बहुत, अक्सर मैं भी यही सोचता हू कि तुम खुश हो, लेकिन ये मन की दुनिया नहीं समझती जो हरदम कहती हैं वह खुश नहीं हो सकती, मैं समझाता हू इन्हें कि किसी को रूलाकर ही कोई खुश हो सकता हैं परंतु मन बडा बलशाली हैं आज भी तुम्हारी तरहा ही जीत जाता हैं मुझसे और डुबाने लगता हैं अंध्ेरों से भरी दुनिया में, खामोशियो के सायें में, क्या तुमने भी कभी महसूस किया हैं इस दुनिया को, बडी अजीब होती हैं यह दुनिया असल जिन्दगी से दूर, जहा छल कपट, झूठ, धेखा, मक्कारी होशियारी, चालाकी का नामोनिशान नहीं होता, बस एक सकून भरी अनुभूति और एहसास हर उस चीज का जिसको जीया हैं हमनें, हर उस पल की याद जिसको जी भरके जिया हैं तुमनें ,उस दर्द की टीस जो बाकी हैं तुमसे बिछड़कर। जैसै स्वर्ग में जीने की कल्पना कर आन्नद आता हैं जहाॅं कोई दुख नहीं, कोई दर्द नहीं, हर तरपफ बस खुशिया ही खुशिया होती हैं और कोई वहा जाकर वापस नही आना चाहता ठीक वैसे ही इसकी दुनिया भी बडी सम्मोहनीय हैं जिसने महसूस किया पिफर वह वापस नहीं आता मेरी तरहा। कुछ लोग तो कहने भी लगे हैं किस दुनिया में खोये रहते हो, उनकी बात समझ नहीं पाता हॅू, इतना समझ गया हू कि दो दुनिया में जीने की कोशिश कर रहा हॅू आजकल, यही तो मन भी कहता है तुम भी तो दूसरी दुनिया में ही जी रही हो। मैं यहाॅ अपने मन की दुनिया में खोया हॅू और तुम शायद तन की। इस तन-मन की दुनिया में हम दोनो ही शायद खुश हैं तुम अपनी खुशियो के साथ और तुम्हारे दिये दर्द के साथ मैं पिफर क्यों लोग मुझसे उलझते हैं और मेरी दुनिया में ताकने की जुर्ररत करते हैं क्या कभी तुमसे भी पूछते है वो तुम इतने खुश क्यों हैं, आज तुम खामोश क्यों हो ? तुम्हारी खामोशियों ने जो दुनिया बख्शी हैं अब इससे गिला नहीं, पर लोग अक्सर शिकायत करते हैं मेरी इस दुनिया के बारे में जब इसके बारे में उन्हें बताता हॅू मैं , नाम पूछते हैं मुझसे तुम्हारा, पर तुमने शायद वादा लिया था इन खामोशियो से नाता जुडवाते वक्त कि कभी तुम्हारा नाम नहीं बताउफंगा पर कभी ये नहीं कहा था कि कोई इस दुनिया के बारे में ना जाने, कोई कहता हैं मैं इस तरहा से बदनाम नहीं कर सकता किसी को, पर अब तक नहीं समझ पाया कि बदनाम कौन होगा?
क्या तुमने भी कभी सोचा था इन खामोशियो के साये में ले जाते वक्त, आज भी तुम ऐसी ही होगी मन भी तो यही कहता हैं तुम भी इसी दुनिया में जी रही होगी, तुमसे भी लोग पूछते होंगे अक्सर यू बैचेन से रहने का कारण, यू अन-गरल बाते करने का कारण,  तुम भी तो तोड़ना चाहती होगी ये खामोशियाॅ जो जन्मी हैं तुम्ही ने, कही न कही दिल के किसी हिस्से से तुम भी बताना चाहती होगी इस दुनिया को कितनी खूबसूरत हैं ये दुनिया, तुम भी जीना चाहती होगी इसकी दुनिया में, चाहती होगी खुदा से सकून दे जो आत्मा को, और भर दे उन खुशियो को झोली में जो मन ने चाही हैं तुम्हारे, पर क्या तुम जानती हो की कोई ख्वाहिश पूरी नहीं होती इस दुनिया में जीने वालो की, मगर नई ख्वाहिशे जन्म नहीं लेती हैं यहाॅ शायद यूही बाहर नहीं आना चाहता में इससे.....
और जैसे नींद से जागा था वह चारो और उसने देखा और पिफर चल दिया एक राह पर।

No comments:

Post a Comment