12 June 2014

मैं भी तुम जैसा हॅू...............

मैं भी तुम जैसा हॅू............... 

       बहुत मोहब्बत थी उसे शायद उससे  क्यो कह नहीं पाया समझ नहीं आया वो अब तक, पर कहते हैं सब कि उसे मोहब्बत थी उससे जिसे मोहब्बत न थी मोहब्बत से भी फिर उस नादान की मोहब्बत को कैसे वो समझ पाती, वो उलझा मोहब्बत की उलझन को सुलझाने मेंऔर जिन्दगी उलझती रही सुलझाने में , तुम वाकई बन गई थी एक तमाशा सा जिसको चारो और तुम और तुम्हारे ओर जिन्दगी उसकी ,तुम जिन्दगी को जीना चाहती थी वो शायद तुम में अपनी जिन्दगी, तुमको पा लेगा इक रोज वो  ऐसा ख्वाब था उसका, पर अक्सर ख्वाब टूट जाते हैं की हकीकत से अंजान ख्वाबो से जागता तो आस-पास खो जाता तुम्हारे, दूर होता तुमसे तो खो जाता ख्वाबो में तुम्हारे, ख्वाब में जिन्दा था वो या ख्वाब की जिन्दगी में समझ न आता था न आया,

     पर ये क्या! न ख्वाब, न जिन्दगी, बकवास है, सब बकवास हैं सुना तो यकीं न आया उसपर जो वो कह रहा था, सच वो था या कह ना पाया वो, जख्मो को कुरेदने जैस होता गहराई से पूछना शायद यू ही  पूछ न पाया कितना टूटा है वह, महसूस खुद-ब-खुद उसे पाकर हो गया, काश............!

          एक चेहरा जो हमेशा हसॅता रहता, कोई पिफक्र नहीं कोई दर्द की परत नहीं चेहरे पर, जिसे अक्सर लोग टोक दिया करते थे कभी तो शांत रहा करो, अब कोई कह रहा था कभी हॅसा भी करों, शायद मोहब्बत की उलझने सुलझा न पाया था वो  कभी कहा भी तो न था उसने कि मोहब्बत है उसे, जो कोई सुलझाता उसकी उलझनो को, पर कोई कहता हैं बेइंतहा  मोहब्बत थी उसे उससे जिसे मोहब्बत न थी मोहब्बत से अब मोहब्बत न रही उसे भी मोहब्बत से और दो इंसान एक से हो गये ऐसे...............

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