Rahagir
जब जब मंजील को बिना पहचाने चला हँ कोई वो अपनी मंजिल को कभी न पा पाया है , वो चल तो दिया था मंजिल को पाने पर ये नहीं सोच पाया की उसको कोंसी मंजिल पानी है , और जब वो अपनी मंजिल के करीब होता है तभी वो भटकता है , मंजिल के करीब पहुच कर उसको वहा पर बहुत सारी मंजिल नज़र आती है , और वो ये सोच में पढ़ जाता है की उसकी मंजिल कोंसी है , उसको अनिक मंजिल नज़र आती है पर वो किस मंजिल के लिए आया था उसको नहीं पता , और फिर वो सोचता है , की किस मंजिल को पाए . ऐसे कितने ही लोग इस दुनिया में मिल जायंगे जो की पाना तो बहुत कुछ चाहते है लेकिन उनको कुछ नहीं मिल पता .
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है राहे कितनी मुस्किल ,
न जाने ये राहगीर ,
चला जा रहा है ,पहचाने
बगैर अपनी मंजील
राहों में चलते -चलते
थक ही गया राहगीर
मिली न मंजिल कोई
फस ही गया राहगीर
सोचा पाना रहा को
खोज न पाया राहगीर
चकर में इस रहा के
फस ही गया राहगीर
कियो फसा रहा में ,
समझ न पाया राहगीर
चला बिना मंजिल पहचाने
अनंत में पछताया राहगीर
मिली न मंजिल कोई
भटकता रहा राहगीर !
(Make One Manjil)
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