Rahagir
जब जब मंजील को बिना पहचाने चला हँ कोई वो अपनी मंजिल को कभी न पा पाया है , वो चल तो दिया था मंजिल को पाने पर ये नहीं सोच पाया की उसको कोंसी मंजिल पानी है , और जब वो अपनी मंजिल के करीब होता है तभी वो भटकता है , मंजिल के करीब पहुच कर उसको वहा पर बहुत सारी मंजिल नज़र आती है , और वो ये सोच में पढ़ जाता है की उसकी मंजिल कोंसी है , उसको अनिक मंजिल नज़र आती है पर वो किस मंजिल के लिए आया था उसको नहीं पता , और फिर वो सोचता है , की किस मंजिल को पाए . ऐसे कितने ही लोग इस दुनिया में मिल जायंगे जो की पाना तो बहुत कुछ चाहते है लेकिन उनको कुछ नहीं मिल पता .
ऐसा ही कुछ हुआ एक मुसाफिर के साथ जिसकी तीन मंजिल थी , जिसमे से दो ठीक थी और एक बेकार ( For the world, not for him) इस बात को वो भे जनता था की उसको लिए कोंन सी मंजिल जरोरी है लेकिन कहते है न की दिल पर किसी का जोर नहीं चलता है और व्ही हुआ उसके साथ जिस मंजिल को वो सबसे बाद में पाना चाहता था वो ही उसके सामने पहले आई . फिर किया था उसने बहुत कोसिस की की वो उस मंजिल की तरफा न जाये पर उसका दिल उसको उस मंजिल की तरफ उतना ही ज्यादा ले जाता जितना वो उस से दूर जाना चाहता था, वो दूर जाना चाहता था कियोकी उसको पता था की दिल जिस मंजिल की तरफ ले जाना चाहता है वो उसको कभी नहीं मिलने वाली है , पर नहीं मन दिल उसका और उसको उस मंजिल के दुआर पर लाकर खड़ा कर दिया , फिर किया था न वो मंजिल मिली और न ही वो अपनी बाकि दो मंजिलो को पाने के लिए मेहनत कर पाया, उसी मुसाफिर ने फिर कुछ इस तरह अपनी कहानी को बाया kiya
है राहे कितनी मुस्किल ,
न जाने ये राहगीर ,
चला जा रहा है ,पहचाने
बगैर अपनी मंजील
राहों में चलते -चलते
थक ही गया राहगीर
मिली न मंजिल कोई
फस ही गया राहगीर
सोचा पाना रहा को
खोज न पाया राहगीर
चकर में इस रहा के
फस ही गया राहगीर
कियो फसा रहा में ,
समझ न पाया राहगीर
चला बिना मंजिल पहचाने
अनंत में पछताया राहगीर
मिली न मंजिल कोई
भटकता रहा राहगीर !
(Make One Manjil)
Made by me